प्रेम और सत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं....मोहनदास कर्मचंद गांधी...........मुझे मित्रता की परिभाषा व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने ऐसा मित्र पाया है जो मेरी ख़ामोशी को समझता है

Monday, October 23, 2017

बाल मनोविज्ञान के आइने में‘शंखेसर रा सींग’

बाल मनोविज्ञान के आइने में‘शंखेसर रा सींग’

बाल मानस का चतुर्मुखी विकास करना ही बाल साहित्य के सृजन का उद्देश्य है ताकि नई पीढ़ी को एक स्वर्णिम भविष्य दिया जा सके। बालक देश के भावी कर्णधार हैं। उनके लिए ऐसा साहित्य अपेक्षित है जो बालकों को सही अर्थों में इन्सान बनने के लिए प्रेरित करे। उनमें दया, क्षमा, त्याग, प्रेम एवं संवेदना आदि गुणों को उत्पन्न करे, उनके अंदर छिपी हुई प्रतिभा को विकसित कर पाये एवं उनमें आपसी वैमनस्य दूर करके परस्पर सद्भाव रखने का महामंत्र फूंके।

प्रस्तुत समीक्ष्य कृति ‘शंखेसर रा सींग’ श्री दीनदयाल शर्मा का सद्य प्रकाशित बाल नाटक है। इसमें घमण्ड जैसे विकार को लेखक ने अपने नाटक का विषय बनाया है। इस नाटक का कथ्य इस प्रकार है।

एक जंगल में पशु-पक्षी न्यायपूर्ण व्यवस्था के बीच अत्यन्त शांति और प्रेम के साथ परस्पर हिलमिल कर रहते हैं। कुछ समय पश्चात् वहां अन्य किसी स्थान से एक गदहा आकर रहने लगता है जो अत्यन्त दुष्ट प्रवृत्ति का है। उसके सिर पर (घमण्ड रूपी) दो नुकीले-तीखे सींग हैं जिनसे वह बिना वजह ही जंगल के अन्य जानवरों को डराता, धमकाता और घायल करता रहता है। परस्पर स्नेहपूर्वक रहने वाले शान्त स्वभाव के धैर्यवान् पशु काफी समय तक उसकी घमण्डी प्रवृत्ति और दुष्टता को सहन करते रहते हैं किन्तु जब दुखी हो जाते हैं तो वह अपने जंगल के राजा बघेलसिंह के पास जाकर उसकी शिकायत करते हैं। राजा बघेलसिंह शंखेसर को प्यार से समझाने का प्रयास करता है पर उसके अडिय़ल और घमण्डी रुख को देखकर अंतत: उसे उसके दोनों सींगों को उखड़वाकर उसे वहां से भगा देना पड़ता है।

इस छोटी सी कथा के माध्यम से कुशल लेखक ने बाल मनोविज्ञान का भरपूर प्रयोग करते हुए बालकों को स्वयं घमण्डी न बनने की शिक्षा दी है। दूसरे, आज हमारे समाज में ऐसे घमण्डी तत्वों की भरमार है जो आपसी सद्भाव और भाईचारे को अपने गर्व और अहंकार से हर समय चोट पहुंचाते रहते हैं, ऐसे तत्वों को प्रेम से समझाने-बुझाने पर यदि व्यवहार में बदलाव न आये तो उन्हें दण्ड दिया जाना आवश्यक है, किन्तु जान से मारना इसका समाधान नहीं है।

लेखक ने नाटक अत्यन्त सहज, सरल, रोजाना बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा में लिखा है। नाटक इतना रोचक है कि बच्चे इस नाटक को मंच पर आसानी से खेल सकते हैं। बच्चे इसमें अभिनय करने, इसे देखने एवं पढऩे सभी में समान रूप से हर्षित होंगे। नाटक के सात दृश्य हैं। सातों में लेखक ने पात्रों के मनोभावों दर्शाने के लिए समयानुकूल उचित टिप्पणी (ब्रेकेट) में प्रदान की है ताकि अभिनय में आसानी रहे।

पुस्तक का आवरण विषय के मंतव्य को समझाने-दर्शाने में पूर्ण रूप से सक्षम है। पुस्तक का कागज, मुद्रण एवं साज-सज्जा सभी स्तरीय है। मैं इतने मनोरंजक बाल नाटक लिखने के लिए दीनदयाल शर्मा को हार्दिक बधाई देती हूं।

-सरला अग्रवाल,
आस्था, 5वीं 20 तलवण्डी,
कोटा-324005, राजस्थान

पुस्तक : शंखेसर रा सींग, लेखक : श्री दीनदयाल शर्मा, प्रकाशक : राजस्थान बाल कल्याण परिषद्, 10/22, आर.एच.बी., हनुमानगढ़ संगम (राज.), पृष्ठ : 40, मूल्य : 20 रुपये। बच्चों की प्रिय पत्रिका बालवाणी, अप्रैल, 1998, पेज संख्या-47 पर

3 comments:

  1. बाल नाट्य कृति ‘शंखेसर रा सींग’ के प्रकाशन पर दीनदयाल शर्मा जी को बधाई!
    प्रस्तुति हेतु आपका धन्यवाद!

    ReplyDelete

हिन्दी में लिखिए